स्वागत

mukeshuwach में आपका स्वागत है. यहाँ आप देखेगें सच्ची भावनायें, रूबरू होगें उन पलों से जो आपके मन को छू जायेगी..

Saturday, December 25, 2010

देशभक्ति बनाम जरुरत

आज फिर से आपसे मुखातिब हूँ , आज कुछ ऐसा एहसास हुआ जो अपने को मध्यमवर्गीय भारतीय होने का एहसास करा  गया.
आज क्रिसमस की छुट्टियाँ शुरू हुयी  है , बहन के घर आया हुआ हूँ, साकेत (दिल्ली). भांजे को कहा चलो तुम्हें   कुछ दिला लाऊं. साकेत डी एल ऐफ मॉल में गया, चारों तरफ विलासिता के साधनों की  विदेशी (कंपनियों) दुकाने थी,  पुहु मुझे  खिलौनों  की दुकान में ले गया, पर उसे वो न दिला सका जो उसे चाहिए था .......
आज जीवन में  ठीक -ठाक  यापन के लिए साधन मिल गया है , ऐसा समझाता था , विलासिता भरे संसाधनों के युग में  अपने को साधरण होने का आभास  ......
पुहु समझदार है.. कहा मामा आपको जूते लेने है न,, चलिए दूसरी दुकान चलते  है... पर न ले सका ... जेब में  पैसे है पर... याद  आया .. पिछले समय जो जूते लिए थे लक्ष्मीनगर के 'अपर्क्स' शोरूम से उससे ढाई गुना कीमत  ज्यादा है .....
दिल्ली हवाए अड्डे पर भी .....
कुछ खाने  को दिल हुआ.... सब और विदेशी कंपनियों की दुकाने ..... थोडा घूमा तो 'हल्दीराम' की दुकान दिख गयी .. वही पाकेट से पैसे निकले .. स्वदेशी दुकान स्वदेशी जेब के लिए ...लगा स्वदेशी कंपनी आब हमरी राष्ट्रभक्ति की प्रतीक   नहीं जरूरत और मज़बूरी बन गयी है .. क्यूंकि ये बाहर जो चारो तरफ छाई विदेशी दुकानें  है वो आपको  दूसरे दर्जे का , मध्यमवर्गीय  होने का एहसास  करा देती है..
मुकेश भारती , 
 २५ दिसंबर २०१० , 
दिल्ली हवाई अड्डा से 

Saturday, October 30, 2010

दर्द की दवा ब्लॉग नहीं

कई महीनों से अपनी प्रेमिका से दूर हूँ,
             ये दूरी  सताती है ,
              रुलाती और परेशान भी करती है.....

" दुनिया के बारे में  लिखते  हो, पर मेरी याद  में रोये ...तो  ब्लॉग क्यों ना लिख लिया ?"
ये शिकायत थी  उसकी .....

                                           मैं  उसके लिए कुछ भी नहीं  लिख पाता हूँ .....



मेरी सोच इस दर्द को क्यों बयां नहीं कर पाती ..?

क्या करूँ ?
.... कैसे बताऊँ तुझे  कि इस दर्द को तुझसे मिले बगैर नहीं मिटा सकता ...
मेरे दर्द की  दवा बस  मिलन और प्यार है.... ये ब्लॉग नहीं.....


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                                                                                                                                मुकेश भारती
                                                                                                                                  30 अक्टूबर 2010
                                                                                                                                गोपेश्वर (उत्तराखंड)

Wednesday, October 27, 2010

करवा चौथ का व्रत ... इतर सन्दर्भ

आज काफी समय के बाद आप से मुखातिब  हो रहा हूँ . आज कुछ ऐसी  बात कहने जा रहा हूँ . जो मेरे कुछ दोस्तों के दर्द  को बढ़ा सकता है. कुछ पुराने घावों  को ताजा  कर सकता है .. माफ़ करना ...

 परम्परायें  हमें  विरासत में  मिली  है.. लेकिन  इनको निभाना आसान नहीं.
करवा चौथ का व्रत सुहागिनों के साथ कुछ और भी लोग करते है, जिन्होंने किसी  को अपना मान  लिया है या प्रेम सम्बन्ध में  है.
                    पर आज उसको   व्रत  करते देखा जिसका सम्बन्ध कुछ कारणों से नहीं रहा ..


आज दिल में ऐसी  हूक उठी के लिखने से आपने को रोक नहीं सका.
उस महिला मित्र ने  ठंढी आह से बताया था कि.... मजाक मजाक में ही  शुरू हो गया.....
  •  शायद इस व्रत को  ढोना  उसकी मज़बूरी बन गयी है.
  • या दिल का एक कोना ये कहता है कि शायद हमारा प्यार फिर हमें वापस मिल जायेगा .
मैं  अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया...
शायद दिल के जज्बातों के  उत्तर शब्दों  से नहीं हो सकते... महसूस  ही कर सकते है आप ...

  उत्तर शायद आपके  पास हो ?..?...?








पुनुमाला चिंता रहती है तुम दोनों की

                                                                                                                       मुकेश भारती
                                                                                                                           गोपेश्वर (उत्तराखंड)
                                                                                                                              27 अक्टूबर  2010

Thursday, August 19, 2010

बहना ... माफ़ कर देना तू..


"बहना! माफ़ कर देना..
 इस  बार  नहीं आ रहा रक्षा बंधन पर .".
लगातार 4-5  सालों  से यही कह रहा हूँ  रूबी को.
 शायद मज़बूरी  या  आदत बन गयी है.

वो सब जानती है ....
रूबी  का पहले ही फोन आ जाता  है .. अपना पता  लिखा  दो .

कहते  हैं वाकई बचपन के दिन   सुनहरे  होते है .
 हम दुनिया की चकाचौध  में   भूल जाते है.. महसूस होता है कि हम   शिखर  पर है,
पर जब रक्षा  बंधन आता है तो मन और  तन कहता है .. काश बचपन होता..

  •   रूबी रोज दिन पूछती थी - भैया  क्या  दे रहो हो..इस बार..

   मैं  भी माँ  से रोज जिद करता की पैसे दे दो, रूबी को कुछ  देना है.
फिर आधे पैसे का गिफ्ट और आधे पैसे में मेले की मौज...

आह !..  आज सब कुछ है पर....

 उस 5 रुपये के उपहार से जो तू खुश होती थी...
उस समय ये लगता था 10  रूपये की ही चीज क्यों  ना दे दी उसे ..
 आज  नहीं आने के कई कारण बता सकता हूँ ..

  • आफिस से छुट्टी नहीं मिली .
  •  तेरी भाभी की तबियत ठीक नहीं है.
  • प्रणय  का टेस्ट होने वाला है. 
  • दीपिका अकेली रह जायेगी....
 सच कहता हूँ रूबी आ जाता  मगर...
शायद  आज जीवन की  प्राथमिकतायें बदल गयी हैं .. तू ना यहाँ आ सकती है, ना मैं वहाँ....
.................मुझे पता है तेरी राखी टाइम से मिल जायेगी ...

सरिता,श्वेता, रूबी, नेहा .... बहुत याद करता हूँ .. तुमको..

मुकेश  भारती.
१९ अगस्त २०१०
गौचर ,उत्तराखंड  

Tuesday, August 10, 2010

माँ का कर्ज तो तुम्हीं अदा कर रहे हो...


                                      
                                                    लेह में भयंकर प्राकृतिक आपदा आयी है...
                                                     पूरा का पूरा लेह  जल  में लीन  हो गया ....

पहले 132 फिर 300 फिर 500 ...........
लापता की तो गिनती ही हो रही है......
  •    जो हाथ सेवा, बचाव  के लिए गए थे, वो थे हमरे सैनिक , भातिसिपू के जवान ,वायु सेना... कुछ सैलानी .
मैंने जीवन में  इतनी भयंकर तबाही की खबर आज तक ना सुनी... शायद आप ने भी नहीं...
  •  भारतीय सेना ने तो माना  ही है  कि ये इतिहास  का सबसे बड़ा  बचाव  और राहत कार्य है  ...

जरा  बचाव  और राहत कैंप  का दृश्य देखिये.....

बेटा .... पानी दे दो....
                     ला रहा हूँ  माँ .......

भैयायया !!!!!!   सिर दर्द से फटा जा रा है
                                अभी  पट्टी बदल रहा हूँ .. आता हूँ.. 
                                                           दावा पी  लो बहन ....

 बेटा!!!!!!!!!!!!!!..ओ  बेटा .... कहाँ  चले गए तुम .... 
लील लिया बाढ़ ने सब कुछ...
                                              नहीं माँ... मैं  हूँ  ना तुम्हारे पास...
 मेरा नन्हा बच्चा  ....कहाँ ... बह गया.. ये तुम बाबू....
                                                  मिल  जायेगा बहन ... ढूँढ  रहें हैं  हम लोग .... 

           सारा घर बर्बाद हो गया...
                                                कोई  नहीं हम बनायेंगे भैया ....

"ये सेवा करते हाथ , नया लेह बनाते हाथ.... संस्तुति करने वाले मुख से  करोड़ गुणा अघिक हैं ...."

जरा गौर  कीजिये

  • एक बच्ची बचाव कार्य में  मिली है... उसकी माँ... हस्पताल में  ही है.... उस माँ को उसकी बच्ची से मिलाते                                  वो हाथ ......
 उस माँ की दर्द भरी आँखों  में  जिसने खुशियाँ वापस की है... उसे उस माँ का कैसे आशीर्वाद मिला होगा..........
                                                 हे सेना के जवानों तुम्हें  शत् शत्   नमन....
                                                               
माँ का कर्ज तुम्हीं उतार रहे हो .....                                                                                                                              
                                                                                                                                    मुकेश भारती 
http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2010/08/100807_leh_gallery_vv.shtml  10 अगस्त 2010, गौचर,       (उत्तराखंड)

Thursday, August 5, 2010

और लिखने बैठ गया.........

जब टाइम से खाना खा लिया.. अपना ईमेल  देख लिया, दोस्तों से चैट  कर लिया.. दोस्तों के कुछ शिकवे- गिले दूर कर लिये .. धीमे......... धीमे.. सब आफ लाइन होने लगते हैं......

प्रेमी प्रेमिका को फोन लगते ........ लगाते.......... जब ना लगे...

तब हम जैसे एकाकी लोग सच में अपने अकेलेपन को महसूस करते है ..
समय कटते ना कटता हो.. तो संगीत .... अपने पसंद का   सुन लिया.. पर फिर भी आँखे खुली रहें तो...
यकायक याद आता है..   माँ का आंचल... छुट्टियों में  बिताए पल, कुछ पूरे अधूरे किये  काम.. जिसको पूरा करना... अब उनकी जिम्मेवारी बन गयी है... लगता है जैसे फ़िल्म देख रहा था अब तक, जब घर कि याद  आई तो पता चला तीन घंटे का शो.. खत्म  हो गया  हो .....

 सच में  जो जीवन हम अपने कार्यस्थल पर जी रहें होते हैं... वो तो Reel life hi hai..(ऑफिस छोडते ही भूल जाओ). real life  तो अब चल रही  है...
जैसे सारी बातें  rewind  होने लगाती हैं... बाबूजी बोलते थे नालायक .. माँ भी जब स्कूल से लौट  कर आती तो मोहल्ले से शिकायत ही मिलती थी...
  पर अब .....
 आते समय बाबू जी रो रहें थे... बाबूजी ...ये पापा लोग दिखने में  जितने सख्तजान होते है ना,  अंदर से उतने ही मुलायम..... माँ तो हिम्मती होती है...

 माँ, बाबूजी... और अपना  घर ......


............और लिखने बैठ गया.........



माँ, बाबूजी बचपन   ला  दो.... आप याद नहीं आते .... आपको अपने साथ जीता हूँ  मैं ..........



5 अगस्त 2010,गुरुवार
गौचर (उत्तराखंड)

Tuesday, August 3, 2010

तुझे क्या चाहिए ?




आज मेरे एक मित्र ने पूछा - आपको  जन्मदिन पर क्या चाहिए ? मैं  सोच में  पड़ गया... कुछ बता ना पाया..
क्या हम जो चाहते वो हमें मिल जाता  है ?
 दोस्तों यही यक्ष प्रश्न  हम सब के सामने होता है.. कि हमें क्या चाहिए ?...
अच्छी नौकरी, अच्छा घर, अच्छा जीवनसाथी ..... बहुत सारी बातें  मन में  आ सकती है.. हम माध्यम वर्ग  के लोग सब कुछ चाहते है..कोशिश भी करते है, पा  भी लेते है.. पर उसके बाद.. पुनः नयी कामनायें हमारे  सामने होती है... कामनाओं  का  अंत नहीं है..
 तो क्या  हम सपने देखना  बंद कर दे ? सन्यासी  बन जाये..  ना..  ये कामनायें ही है जो हमें जीवन में आगे बढने की प्रेरणा देते है...
पर आगे बढने से पहले हम उस रस्ते को भी जरुर देखे.. जिसमे किसी  का  नुकसान ना हो या कम से कम हो.. ... कोई   हमारे बढ़ते पैरों के नीचे ना आ जाये.. हम किसी  को धक्का ना दे दे.. क्योंकि वो सफलता आपको  बाद में  जरुर असंतुष्ट करेगी .. साधारण रूप से मानव  मानसिक शान्ति चाहता है... हम और आप भी...
तो सपने देखो,  और उनको पूरा करो अपने दम पर, अपने दोस्तों के दम पर, आपने अच्छे व्यवहार के दम पर ...
तब जो सफलता मिलेगी   वो  आपको जरुर आत्मिक शांति और आनन्द  देगी ... ....
तो तैयार हैं ..........

                                                                                                 मुकेश भारती ,
                                                                                                  गौचर,उत्तराखंड

Monday, August 2, 2010

जा तुझे सपने पूरे करने है..

आज- कल में सब कॉलेज खुल जायेगे.. सब बच्चे माँ, पापा, दीदी, भाई , नन्हें  नन्हीं ... को छोड़ कर आपने कॉलेज को जायेगे.. रूडकी, कोचिन. बेंगलुरु, कोलकाता, पुणे,  और कहाँ ...कहाँ ....  गौतम, विकास , शोभित, अनुराग, रोजी.. सब जा रहें है.. एक दिन हम भी निकले थे.. पूरा करने सपनों को आपनों को छोड़ कर...
माँ , पापा,, के सपने... बस तू जहाँ रहें... अच्छे से रहें..
भैया ... जा  मस्त रहना...

                    ....... जा तुझे सपने पूरे करने हैं ..





गौतम मिस करता हूँ तुमको...
2अगस्त 2010

Sunday, August 1, 2010

ना! ये तेरा नहीं है...

कभी कभी हमें ये लगता है कि हमने वो सब कुछ पा  लिया जो हमें चाहिए था..पर कुछ ही समय बाद पता चलता है कि वो सब एक टूटता हुआ सपना था. उस टूटते सपनो को वही महशूस कर सकता है जिसने उसे बुना है.. टूटते  सपनों की  घुटन..  लगता है जीवन एक बोझ हो गया.. पर क्या ये जीवन हमारा है? नहीं ये  तो माता पिता के द्वारा हमें ईश्वर  ने  दिया है.  बस हम इसे जीने के अधिकारी है.. जैसे एक घर हो किराये का...

 क्या हमें अपने टूटे सपनो का दर्द नहीं होना चाहिए .... जरुर,,,
पर दर्द जीवन पर भरी ना हो जाये... टूटते सपनो को जोड़ सको तो जोड़ो.. पर... टूट गए  सपनो को बुनाने मत बैठो .. फिर कोइ  नया सपना बुनो जो अपना हो... जीवन जीने की  राहे अनेक है. जियो  जी भर के..



 राजेश मिस करता हूँ  तुमको...  मुकेश  भारती
                                                १ अगस्त २०१०