"बहना! माफ़ कर देना..
इस बार नहीं आ रहा रक्षा बंधन पर .".
लगातार 4-5 सालों से यही कह रहा हूँ रूबी को.
शायद मज़बूरी या आदत बन गयी है.
वो सब जानती है ....
रूबी का पहले ही फोन आ जाता है .. अपना पता लिखा दो .
कहते हैं वाकई बचपन के दिन सुनहरे होते है .
हम दुनिया की चकाचौध में भूल जाते है.. महसूस होता है कि हम शिखर पर है,
पर जब रक्षा बंधन आता है तो मन और तन कहता है .. काश बचपन होता..
- रूबी रोज दिन पूछती थी - भैया क्या दे रहो हो..इस बार..
मैं भी माँ से रोज जिद करता की पैसे दे दो, रूबी को कुछ देना है.
फिर आधे पैसे का गिफ्ट और आधे पैसे में मेले की मौज...
आह !.. आज सब कुछ है पर....
उस 5 रुपये के उपहार से जो तू खुश होती थी...
उस समय ये लगता था 10 रूपये की ही चीज क्यों ना दे दी उसे ..
आज नहीं आने के कई कारण बता सकता हूँ ..
- आफिस से छुट्टी नहीं मिली .
- तेरी भाभी की तबियत ठीक नहीं है.
- प्रणय का टेस्ट होने वाला है.
- दीपिका अकेली रह जायेगी....
सच कहता हूँ रूबी आ जाता मगर...