छुट्टियों में घर पर था .
मामा का फोन आया नाना जी की तबियत ठीक नहीं .
नाना तुम्हारी मम्मी को बुला रहे हैं
मै माँ को ले कर गया ... रस्ते में मैंने सोचा कि आज नाना जी को निर्गुण (माया मोह से मुक्त होने वाले कबीर भजन) सुनाऊंगा.. नाना जी के पास पहुंचा तो सच में उनकी दशा ठीक नहीं थी .. नानाजी दो दिन से खाना नहीं खा पा रहे थे ... पर
वे दवा माँग कर खा लिया करते थे ... मैंने देखा कि उनमें जीवन जीने की इच्छा बची हुई है .. वो जीना चाहते है .... तो क्या...निर्गुण..... माया .......
...आज के समय में जहाँ सामाजिक मूल्यों में गिरावट आयी है..... वृद्धाश्रम ....और Old age home में लोग रह रहे है...जहाँ ..
'भगवान मुझे उठा ले
' बुला ले अपने पास '
ये जुमले सुनाने को मिलते है ...
परन्तु मेरे नाना और जीना चाहते है..... तो यानि....इस जीवन से उनका मन नहीं भरा... क्यों....
मामा की लाई दवाओं से और सेवा से उनकी तबियत संभल गयी.....
..........रात में मामा ने कहा कि नाना को निर्गुण नहीं सुनाओगे...? मेरे पास कोई जवाब न था ....
अगर मृत्यु सत्य है
... तो जीवन भी... महासत्य ....
ईश्वर ने अमर आत्मा बनाई है तो
...... नश्वर जीवन भी उस की ही कृति है.. .......
तो 'माया' से मोह .. क्यों ना हो.....?
..............और मैं निर्गुण नहीं सुना पाया ..
नानाजी आपकी जैसी जिन्दगी सब को मिले....
अब स्मृतियों में ...... प्रणाम .....
मुकेश भारती
गौचर, उत्तराखंड