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mukeshuwach में आपका स्वागत है. यहाँ आप देखेगें सच्ची भावनायें, रूबरू होगें उन पलों से जो आपके मन को छू जायेगी..

Tuesday, March 1, 2022

"Yog Yog Yogeshwaray" A Soulful heart Touching Shiva Chanting योग योग यो...

Wednesday, March 2, 2016

माँ की चिठ्ठी सियाचिन के वीरो के नाम


मौत को मात देता चलता है ,

        क्षण क्षण  पल पल प्रतिपल प्रतिक्षण चल कर । 

                      मातृभूमि का कर्ज चुकाने निकला है 

                                          मेरा अणु अणु बह कर।।





सियाचिन दुनियां का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र , जहाँ  दुश्मन की गोली लगे न लगे, -60 डिग्री तापमान  की सर्दी मारने के लिए काफी  है। देह का जो हिस्सा खुला रह गया जम  जाता है।


वहाँ जब तू जाता है, तैनात रहता है, हड्डियों को गला कर साँसे जमा कर, आँखों से बस टकटकी सी बर्फ देखते....  सब को छोड़ मौत के संग खेलने को क्यों... मेरे लिए ही ना...
                                  तेरी ठिठुरती हड्डियों और जमती हुई साँसों को  महसूस कर सकू .. मेरी औकात नहीं.. बस ये कहूँगा की सुपर मैन भी तेरी बराबरी नहीं कर सकता।
                                        2 फ़रवरी को जब तुम सब मौत के बर्फीले अंधड़ में फंसे तो सब कह रहे थे, अब शायद तू लौटेगा नहीं। पर मैंने भी तुझे जोर से आवाज़ sssssssss दी । आ गया न तू.... मेरे लिये.....
                                         
                                                            तेरी फ़िल्म देखी थी 26 जनवरी को डिस्कवरी पे.... इतनी जल्दी एक नयी कहानी जुड़ जायेगी सोचा न था... तूने कभी बताया नहीं की वहाँ जा कर बाल दाढ़ी नख कुछ भी नहीं बनाता..  मेरा योगी गया है न कैलाश पर....
                                                    जब तू मेरी पुकार पर लौट आया ... पर बोला कुछ नहीं.... आँखें आँसुओं से भरी तो थी पर छलकने न दिया... तेरी कसम की खातिर...
                                                                  सुना है तू अपना श्राद्ध कर्म वहाँ जाने से पहले कर चुका है... कितना दानी है रे तू..

                        वहाँ रोज मरता रोज जीता प्राणों का उत्सर्ग करता.. फिर भी कहता है माँ तुम्हारा ऋण बहुत है...।

सियाचिन  के उन तमाम शहीदो को नमन। .. माँ का ऋण नहीं रहा अब आप पर... .. 
                                                                                      मुकेश भारती , 
                                                                                     मेरठ  10 फ़रवरी 2016 




Tuesday, March 27, 2012

आस्था, चलन और संगीत

आज नवरात्रि का  पहला दिन है... रात में ही हिदायत मिली थी  के सुबह जल्दी उठना है पूजा करनी है...  जल्दी उठा नहाया धोया ...
पर आज ये सब बाते क्यों कर रहा हूँ?
 बात ही कुछ  ऐसी  है..  
संगीत से हम   भारतीयों का  कुछ इस कदर  लगाव   है.. कि हर तीज- त्यौहार , पूजा यहाँ तक की  दुःख  में भी संगीत का प्रयोग  होता है...
                                                                      सुबह भी मैंने  DVD  ऑन किया  ...   भक्ति के गाने चलने लगे.. सब काम  होते रहे..  घर साफ हो गया..  पूजा की  थाली लग गयी , हवन सामग्री सज  गयी.. दीप जल गया.. ...  पर जब पूजा शुरु होने हो हुई तो .. DVD  से "ख्वाजा  मेरे ख्वाजा दिल में समा जा"  (फ़िल्म जोधा -अकबर ) बजने लगा..  वो पूजा कर रही थी.. मैंने   DVD  बंद कर  दूसरा गाना( देवी के गीत) चलाने की  कोशिश   कर ही रहा था के आवाज़ आई.. गाना क्यूँ बंद कर दिया...

मेरा उत्तर आपका उत्तर हो सकता है..

के भाई दुर्गा माँ  जी की  पूजा के समय मुसलमानी  गीत...... अरे ये तो गजब हो जायेगा....
पर.. उसका उत्तर था ... भगवन तो एक ही  है... सब गाने उसके ही...

अब मेरे जेहन में दो सवाल आये...

.............................क्या नयी सोच का चलन आ गया.
या वो संगीत की जादूगरी थी .....???

चलो... हम तो बदल गए पर वो.....???


मुकेश भारती ,
गौचर , उत्तराखंड .
२३-०३-२०१२

Saturday, August 27, 2011

अनशन और आत्मशुद्धि

आज कल अन्ना के अनशन की सब ओर चर्चा  है .. यूँ  कहें तो लोकपाल और अनशन का डंका बज रहा है ..
महात्मा गाँधी ने ये हथियार हम सब भारतीयों को दिया .. पर उसका उपयोग अन्ना जैसे ही  कुछ लोग कर रहे है.
ये जो अनशन रूपी हथियार है, वह  बाहरी भ्रष्टाचार   से तो लड़ ही  रहा है.. पर अपने अंदर के  भ्रष्टाचार को भी मिटाता है .. देखिये एक बानगी ..

                                      आदमी इस दुनिया में है तो कोई  ना कोई  कमी अवश्य रहती है, सुधार की  गुन्जाइश इस दुनिया को छोडने से पहले तक..  लाज़मी है मेरे अंदर भी अवगुणों  की  भरमार है ..
ये अवगुण भी दो तरह के है .... एक जो सिर्फ अपने को हानि पहुँचते  है .. और दूसरे  ... जो हमें और दोस्त , दुनियाँ    सब को  ...
कड़वा सच बोलने की आदत  के कारण एक मित्र का मेरे द्वारा  समाज में अपमान हो गया.. हलाँकि वो  थे भी इस काबिल .... परन्तु थोड़ी देर बाद ही  ये महसूस हो गया कि.. कड़वा सच मुझे ही  अब दुःख दे रहा है..
मन में ग्लानि हुई.. मित्र भी ऐसे थे कि मान अपमान को झाड़ कर चल पड़े .... सच कहें तो वो इस कदर ढीठ हो गये थे .. कि मान अपमान या गलती कर के उन्हें फर्क नहीं पड़ता .. जब उनके इस गुण को जाना तो दुःख और बढ़ गया ..
मन कचोटता रहा क्या करूँ ?
टीवी पर अन्ना दिख रहे थे , और उस पर उनके अनशन की   खबर ...
बस सोंच लिया अनशन .. रात के भोजन का त्याग कर
अपने मन के मलाल को दूर कर लिया ....
लगा जैसे आत्मा शुद्ध हो गयी ..

......................................करना चाहेंगे आप भी आत्मशुद्धि ......
                                                                                                                         
                                                                                                                                      मुकेश भारती,
                                                                                                                                               गौचर
                                                                                                                                   चमोली, (उत्तराखंड)


Sunday, May 1, 2011

आ रहा हूँ... मैं ...

अप्रैल का महीना खत्म......

मई शरू...........
कुछ  बात है इस महीने में..
 आज ग्यारह साल हो गये  बाहर निकले... पर आज तक मुझको इस महीने का हर साल इंतजार रहता है...

 क्यूँ..?  बचपन में गाते थे
गर्मी की ये सभी छुट्टियाँ नाना -नानी जी के नाम...
अब  मम्मी .. बाबूजी के नाम...
चलो  चले  अपने नगर और गावं जहाँ हम पैदा हुये....
चलो  चले .. उस बाग  में जहाँ आम लीची.. चुरा कर खाया  करते थे..
चलो चले उस ममता की छाँव में ... जिसकी गंध को जी तरसता है..
चलो मिले... अपने.. मातृभूमि  की खुशहाली और बदहाली से ...

 चलो मिले... उनसे जिन्होंने हमारे लिए सपना देखा था...  और देख रहे है...
 उनसे रु ब रु होने.. जिसका ही अंश हो तुम..




..................................... पूरा साल निकल गया... बाबूजी माँ से  रोज पूछते  होगे..है कब चलेगा .. किस गाड़ी में.. टिकट है...... उस राह देखती आँखों... को...
उसकी प्यास बुझाने .... अब चलो ...

 अब बस ..  और नहीं...
चलो....

माँ ...  आ रहा हूँ.. मैं .......
                                                                                             मुकेश भारती
                                                                                           गौचर ,उत्तराखंड .
                                                                                               01 मई 2011







Tuesday, March 15, 2011

आँचल की गंध




आँचल की गंध


2 जी  3जी  नेट इन्टरनेट .... कॉल फोन कॉल .... चैट .... वीडियो चैट.... और क्या क्या...
 लगता है हम 24 घंटे ..  सारी दुनिया से जुडे हुए   .... अलग है ही नहीं .....
अब साल ...दो  साल में घर जाओ ...
कोइ बात नहीं ना जाओ सब मनैज हो जाता है .. तब भी..........

पर.... कुछ.. लगता है अपने को की ये ठीक है या नहीं ..
एक बानगी ...

 एक लंबा अर्सा हो गया .. तुम से मिले .....
मन कुछ ठीक नहीं लग रहा है,
क्यों बेटा ...? क्यों परेशान हो रहे हो ?
बात तो कर ही लेती हूँ ...
हाँ..... वो तो सब ठीक है ...
बेटा .. तुमने वीडियो चैट करना  सिखाया  था ....
उससे तुमको देख भी लेती हूँ....

वो सब तो ठीक है.... माँ पर...

बेटा .... तो क्या......




.................माँ पर तेरे आँचल की गंघ नहीं आती .........
                                                                                                                          

                                                                                                                           मुकेश भारती
                                                                                                                            चंडीगढ़ से ,
                                                                                                                           15-03-2011