मौत को मात देता चलता है ,
क्षण क्षण पल पल प्रतिपल प्रतिक्षण चल कर ।
मातृभूमि का कर्ज चुकाने निकला है
मेरा अणु अणु बह कर।।
सियाचिन दुनियां का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र , जहाँ दुश्मन की गोली लगे न लगे, -60 डिग्री तापमान की सर्दी मारने के लिए काफी है। देह का जो हिस्सा खुला रह गया जम जाता है।
वहाँ जब तू जाता है, तैनात रहता है, हड्डियों को गला कर साँसे जमा कर, आँखों से बस टकटकी सी बर्फ देखते.... सब को छोड़ मौत के संग खेलने को क्यों... मेरे लिए ही ना...
तेरी ठिठुरती हड्डियों और जमती हुई साँसों को महसूस कर सकू .. मेरी औकात नहीं.. बस ये कहूँगा की सुपर मैन भी तेरी बराबरी नहीं कर सकता।
2 फ़रवरी को जब तुम सब मौत के बर्फीले अंधड़ में फंसे तो सब कह रहे थे, अब शायद तू लौटेगा नहीं। पर मैंने भी तुझे जोर से आवाज़ sssssssss दी । आ गया न तू.... मेरे लिये.....
तेरी फ़िल्म देखी थी 26 जनवरी को डिस्कवरी पे.... इतनी जल्दी एक नयी कहानी जुड़ जायेगी सोचा न था... तूने कभी बताया नहीं की वहाँ जा कर बाल दाढ़ी नख कुछ भी नहीं बनाता.. मेरा योगी गया है न कैलाश पर....
जब तू मेरी पुकार पर लौट आया ... पर बोला कुछ नहीं.... आँखें आँसुओं से भरी तो थी पर छलकने न दिया... तेरी कसम की खातिर...
सुना है तू अपना श्राद्ध कर्म वहाँ जाने से पहले कर चुका है... कितना दानी है रे तू..
वहाँ रोज मरता रोज जीता प्राणों का उत्सर्ग करता.. फिर भी कहता है माँ तुम्हारा ऋण बहुत है...।
सियाचिन के उन तमाम शहीदो को नमन। .. माँ का ऋण नहीं रहा अब आप पर... ..
मुकेश भारती ,
मेरठ 10 फ़रवरी 2016