अप्रैल का महीना खत्म......
मई शरू...........
कुछ बात है इस महीने में..
आज ग्यारह साल हो गये बाहर निकले... पर आज तक मुझको इस महीने का हर साल इंतजार रहता है...
क्यूँ..? बचपन में गाते थे
गर्मी की ये सभी छुट्टियाँ नाना -नानी जी के नाम...
अब मम्मी .. बाबूजी के नाम...
चलो चले अपने नगर और गावं जहाँ हम पैदा हुये....
चलो चले .. उस बाग में जहाँ आम लीची.. चुरा कर खाया करते थे..
चलो चले उस ममता की छाँव में ... जिसकी गंध को जी तरसता है..
चलो मिले... अपने.. मातृभूमि की खुशहाली और बदहाली से ...
चलो मिले... उनसे जिन्होंने हमारे लिए सपना देखा था... और देख रहे है...
उनसे रु ब रु होने.. जिसका ही अंश हो तुम..
..................................... पूरा साल निकल गया... बाबूजी माँ से रोज पूछते होगे..है कब चलेगा .. किस गाड़ी में.. टिकट है...... उस राह देखती आँखों... को...
उसकी प्यास बुझाने .... अब चलो ...
अब बस .. और नहीं...
चलो....
माँ ... आ रहा हूँ.. मैं .......
मुकेश भारती
गौचर ,उत्तराखंड .
01 मई 2011
मई शरू...........
कुछ बात है इस महीने में..
आज ग्यारह साल हो गये बाहर निकले... पर आज तक मुझको इस महीने का हर साल इंतजार रहता है...
क्यूँ..? बचपन में गाते थे
गर्मी की ये सभी छुट्टियाँ नाना -नानी जी के नाम...
अब मम्मी .. बाबूजी के नाम...
चलो चले अपने नगर और गावं जहाँ हम पैदा हुये....
चलो चले .. उस बाग में जहाँ आम लीची.. चुरा कर खाया करते थे..
चलो चले उस ममता की छाँव में ... जिसकी गंध को जी तरसता है..
चलो मिले... अपने.. मातृभूमि की खुशहाली और बदहाली से ...
चलो मिले... उनसे जिन्होंने हमारे लिए सपना देखा था... और देख रहे है...
उनसे रु ब रु होने.. जिसका ही अंश हो तुम..
..................................... पूरा साल निकल गया... बाबूजी माँ से रोज पूछते होगे..है कब चलेगा .. किस गाड़ी में.. टिकट है...... उस राह देखती आँखों... को...
उसकी प्यास बुझाने .... अब चलो ...
अब बस .. और नहीं...
चलो....
माँ ... आ रहा हूँ.. मैं .......
मुकेश भारती
गौचर ,उत्तराखंड .
01 मई 2011