स्वागत

mukeshuwach में आपका स्वागत है. यहाँ आप देखेगें सच्ची भावनायें, रूबरू होगें उन पलों से जो आपके मन को छू जायेगी..

Thursday, August 19, 2010

बहना ... माफ़ कर देना तू..


"बहना! माफ़ कर देना..
 इस  बार  नहीं आ रहा रक्षा बंधन पर .".
लगातार 4-5  सालों  से यही कह रहा हूँ  रूबी को.
 शायद मज़बूरी  या  आदत बन गयी है.

वो सब जानती है ....
रूबी  का पहले ही फोन आ जाता  है .. अपना पता  लिखा  दो .

कहते  हैं वाकई बचपन के दिन   सुनहरे  होते है .
 हम दुनिया की चकाचौध  में   भूल जाते है.. महसूस होता है कि हम   शिखर  पर है,
पर जब रक्षा  बंधन आता है तो मन और  तन कहता है .. काश बचपन होता..

  •   रूबी रोज दिन पूछती थी - भैया  क्या  दे रहो हो..इस बार..

   मैं  भी माँ  से रोज जिद करता की पैसे दे दो, रूबी को कुछ  देना है.
फिर आधे पैसे का गिफ्ट और आधे पैसे में मेले की मौज...

आह !..  आज सब कुछ है पर....

 उस 5 रुपये के उपहार से जो तू खुश होती थी...
उस समय ये लगता था 10  रूपये की ही चीज क्यों  ना दे दी उसे ..
 आज  नहीं आने के कई कारण बता सकता हूँ ..

  • आफिस से छुट्टी नहीं मिली .
  •  तेरी भाभी की तबियत ठीक नहीं है.
  • प्रणय  का टेस्ट होने वाला है. 
  • दीपिका अकेली रह जायेगी....
 सच कहता हूँ रूबी आ जाता  मगर...
शायद  आज जीवन की  प्राथमिकतायें बदल गयी हैं .. तू ना यहाँ आ सकती है, ना मैं वहाँ....
.................मुझे पता है तेरी राखी टाइम से मिल जायेगी ...

सरिता,श्वेता, रूबी, नेहा .... बहुत याद करता हूँ .. तुमको..

मुकेश  भारती.
१९ अगस्त २०१०
गौचर ,उत्तराखंड  

4 comments:

  1. truly expressed feelings. very nice poem

    ReplyDelete
  2. great feelings from the core of the heart for SISTER.

    ReplyDelete
  3. great feelings from the core of the heart for sister.

    ReplyDelete
  4. can't speak after reading it................sb kehte hai mai bahut bolti hu.....pr aj apka ye article padhne k bad mere pass bolne k liye words nhi hai.................

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ मुझे लिखने को और प्रेरित करेगीं ...