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Sunday, May 1, 2011

आ रहा हूँ... मैं ...

अप्रैल का महीना खत्म......

मई शरू...........
कुछ  बात है इस महीने में..
 आज ग्यारह साल हो गये  बाहर निकले... पर आज तक मुझको इस महीने का हर साल इंतजार रहता है...

 क्यूँ..?  बचपन में गाते थे
गर्मी की ये सभी छुट्टियाँ नाना -नानी जी के नाम...
अब  मम्मी .. बाबूजी के नाम...
चलो  चले  अपने नगर और गावं जहाँ हम पैदा हुये....
चलो  चले .. उस बाग  में जहाँ आम लीची.. चुरा कर खाया  करते थे..
चलो चले उस ममता की छाँव में ... जिसकी गंध को जी तरसता है..
चलो मिले... अपने.. मातृभूमि  की खुशहाली और बदहाली से ...

 चलो मिले... उनसे जिन्होंने हमारे लिए सपना देखा था...  और देख रहे है...
 उनसे रु ब रु होने.. जिसका ही अंश हो तुम..




..................................... पूरा साल निकल गया... बाबूजी माँ से  रोज पूछते  होगे..है कब चलेगा .. किस गाड़ी में.. टिकट है...... उस राह देखती आँखों... को...
उसकी प्यास बुझाने .... अब चलो ...

 अब बस ..  और नहीं...
चलो....

माँ ...  आ रहा हूँ.. मैं .......
                                                                                             मुकेश भारती
                                                                                           गौचर ,उत्तराखंड .
                                                                                               01 मई 2011







5 comments:

  1. घर से बिछोह का दर्द क्या होता है तुम्हारी रचना में साफ़ देखा जा सकता है मुकेश , लगता है छुटियाँ होने वाली है और तुम माँ के आँचल में समाने को बेताब हो |
    सुन्दर एहसास से लबालब हुई रचना |

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  2. very nice sir..................
    sach mei hmari chuuttiyaan ab ghar tk hi seemit reh gai hai............kehneko hum bde ho gye hai, pr bachcho ki tahah ab bhi intzaar hai........... summer vacations ka......

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  3. great bhaiya...
    hamlog pure sal is waqt ka intjar karte hai...
    or jab waqt aaya hai to aapke dil se ye aawj jo ki sach hai,ham apne pariwar or apne bachpan se ite dur chle jati hai is pal ke sukh ko chorna nhi chahte...

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  4. आपने ये ब्लॉग .. बस ... लगता है... रुलाई आ जायेगी...
    भावुक कर देता है... ये लेखन नहीं है... ये दर्द है.. जो निकल रहा है.. आपके शब्दों से..

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