आज क्रिसमस की छुट्टियाँ शुरू हुयी है , बहन के घर आया हुआ हूँ, साकेत (दिल्ली). भांजे को कहा चलो तुम्हें कुछ दिला लाऊं. साकेत डी एल ऐफ मॉल में गया, चारों तरफ विलासिता के साधनों की विदेशी (कंपनियों) दुकाने थी, पुहु मुझे खिलौनों की दुकान में ले गया, पर उसे वो न दिला सका जो उसे चाहिए था .......
आज जीवन में ठीक -ठाक यापन के लिए साधन मिल गया है , ऐसा समझाता था , विलासिता भरे संसाधनों के युग में अपने को साधरण होने का आभास ......
पुहु समझदार है.. कहा मामा आपको जूते लेने है न,, चलिए दूसरी दुकान चलते है... पर न ले सका ... जेब में पैसे है पर... याद आया .. पिछले समय जो जूते लिए थे लक्ष्मीनगर के 'अपर्क्स' शोरूम से उससे ढाई गुना कीमत ज्यादा है .....
दिल्ली हवाए अड्डे पर भी .....
कुछ खाने को दिल हुआ.... सब और विदेशी कंपनियों की दुकाने ..... थोडा घूमा तो 'हल्दीराम' की दुकान दिख गयी .. वही पाकेट से पैसे निकले .. स्वदेशी दुकान स्वदेशी जेब के लिए ...लगा स्वदेशी कंपनी आब हमरी राष्ट्रभक्ति की प्रतीक नहीं जरूरत और मज़बूरी बन गयी है .. क्यूंकि ये बाहर जो चारो तरफ छाई विदेशी दुकानें है वो आपको दूसरे दर्जे का , मध्यमवर्गीय होने का एहसास करा देती है..
मुकेश भारती ,
२५ दिसंबर २०१० ,
दिल्ली हवाई अड्डा से
nice one bhaiya.. :)
ReplyDelete---mitthoo